ड़ाॅ. एस आर रंगनाथन | Dr. S. R. Ranganathan

एस. आर. रंगनाथन . फादर आॅफ लाइबे्ररी साइन्स


इन्हें पुस्तकालय विज्ञान के भीष्मपिता कहते है। इनका पूरा नाम:- शियाली रामामृत रंगनाथन है। इनका जन्म 12 अगस्त 1892 को ग्राम शियाली जिला तंजौरए मद्रासए चेन्नई ए तमिलनाड्ड में हुआ। इनकी मृत्यू 27 सितंबर, 1972 को बंगलौर में हुई। 

इनके पिता एन. रामामृत अय्यर व माता सीता लक्ष्मी थी। इनकी पत्नी रूक्मणी ( 1907) षारदा 1929 थी। इनके पुत्र योगेशवर थे।

कर्म भूमि:- भारत
कर्म. क्षेत्र:- लेखक, शिक्षण, गणितज्ञए पुस्तकालयाध्यक्ष

योगदान:- प्रमुख तकनीकी योगदान वर्गीकरण और अनुक्रमणीकरण (इंडेक्सिंग) सिद्धांत था।
नागरिकता:- भारतीय

एस. आर. रंगनाथन की कृतियों में प्रमुख निम्नलिखित हैं-

क़्लासिफा़इड कैटेलाॅग कोड (1934), प्रोलेगोमेना टु लाइबे्ररी क़्लासिफ़िकेशन (1937), थ्योरी आॅफ़ लाइबे्ररी कैटेलाॅग (1938), एलीमेंट्स आॅफ लाइबे्ररी क़्लासिफ़िकेन (1945), क़्लासिफ़िकेन एंड इंटरनेनल डाॅक्यूमेंटेन (1948), क़्लासिफ़िकेन एंड कम्युनिकेन (1951), हेडिंग्स एंड कैनन्स (1955)

उपाधिया:-

डी लिट (1964), मारगेट मान (1970), राव साहब (1935), डाॅ. लेर्टस (1948), पद्मश्री (1957) 


उनके काॅलन क़्लासिफ़िकेन (1933) ने ऐसी प्रणाली शूरू कीए जिसे विश्व  भर में व्यापक रूप में इस्तेमाल किया जाता है। उनकी शिक्षा शियाली के हिन्दू हाई स्कूल मद्रास क्रिक्षिचयन काॅलेज में ( जहाँ उन्होंने  1913 और 1916 में गणित में बी.ए. और एम. ए. की उपाधि प्राप्त की ) और टीचर्स काॅलेज सईदापट्ट में हुई। 1917 में वे गोवर्नमेंट काॅलेज मंगलोर में नियुक्त किए गए। बाद में उन्होंने 1920 में गोवर्नमेंट काॅलेज कोयंबटूर और 1921 . 1923 के दौरान प्रेजिडेंसी काॅलेज मद्रास विश्व  विद्यालय में अध्यापन कार्य किया। 1924 में उन्हें मद्रास विश्व  विद्यालय का पहला पुस्तकालयाध्यक्ष बनाया गया और इस पद की योग्यता हासिल करने के लिए वे यूनिवर्सिटी काॅलेज लंदन में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड़ गए। 
1925 से मद्रास में उन्होंने यह काम पुरी लगन से षुरू किया और 1944 तक वे इस पद पर बने रहे। 
1945 -1947 के दौरान एस. आर.रंगनाथन ने बनारस विश्व विद्यालय में पुस्तकालय विज्ञान के प्राध्यापक के रूप में कार्य किया 1947-1954 के दौरान उन्होंने दिल्ली विश्व विद्यालय में पढ़ाया। 1954-1957 के दौरान वे ज्यूरिख स्विट्जरलैंड़ में शोध और लेखन में व्यस्त रहे। इसके बाद वे भारत लौट आये। 1959 तक विक्रम विश्व  विद्यालय उज्जैन में अतिथि प्राध्यापक रहे। 1962 में उन्होंने बंगलोर में प्रलेखन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया और इसके प्रमुख बने और जीवनपर्यंत इससे जुड़े रहे। 

1965 में भारत सरकार ने उन्हें पुस्तकालय विज्ञान में राष्ट्रीय शोध प्राध्यापक की उपाधि से सम्मानित किया। सन् 1947 में वे सर मौरिस ग्वायर के निमंत्रण पर दिल्ली विश्व विद्यालय आ गये। वहां उनके दिशा निर्देश में बेचलर और मास्टर और लाइबे्ररी साइंस की शुरूआत की गयी। सन् 1954 तक वे वहां रहे। 1954-57 के दौरान वे ज्यूरिख व स्विट्जरलैंड़ में शोध और लेखन में व्यस्त रहे। 1959 तक विक्रम विश्व विद्यालय उज्जैन में अतिथि प्राध्यापक रहे। 

1962 में उन्होंने बंगलोर में प्रलेखन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंन्द्र स्थापित किया और जीवनपर्यंत इससे जुड़े रहे। 1935 और 1957 में भारत सरकार ने उस पर क्रमश: मानवीय शीर्षक राव साहब सार्वजनिक सेवा पुरस्कार व पद्यम् श्री दिया जाए। 1948 में वह दिल्ली विश्व विद्यालय से साहित्य की डाॅक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त की.। 1964 में उन्होंने पिट्सबर्ग विश्व  विद्यालय से एक ही ड़िग्री प्राप्त की.। 1965 में उन्होंने भारत सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय अनुसंधान प्रोफेसर बनाया गया था। और 1970 में वह अमेरिकी लाइबे्ररी एसोसिएशन का कैटलाॅग और वर्गीकरण में माग्रेट मान प्रशस्ति पत्र प्राप्त किया। 

1976 में उनकी स्मृति में रंगनाथन पुरस्कार की स्थापना की. योग्यता की यह प्रमाण पत्र वर्गीकरण के क्षेत्र में हाल ही में एक उत्कृष्ट योगदान के लिए द्विवार्षिक रूप से सम्मानित किया है. डाॅ. रंगनाथन हमारे देश में लाइबे्ररी और पुस्तकालय विज्ञान की वास्तविक आवश्यकता की पहचान करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में स्वीकार किये जाते है। अतः इस क्षेत्र में उनको योगदान को याद करते हुए देश  में 12 अगस्त को राष्ट्रीय लाइबे्ररियन डे के रूप में मनाया जाता है। 

डाॅ एस आर रंगनाथन का जन्म 9 अगस्त को हुआ था। जब उन्हें स्कूल में भर्ती कराया गया था तो उनकी जन्म तिथि 12 अगस्त दर्ज की गई थी। अतः 12 अगस्त को ही उनकी याद में राष्ट्रीय लाइबे्ररियनडे मनाया जाता है। एस. आर. रंगनाथन की मृत्यु सितम्बर 1972 को 80 वर्ष की आयु में बंगलोर में हुई थी। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में रंगनाथन अंत में बीमार स्वास्थ्य के आगे घुटने टेक दिए, और काफी हद तक अपने बिस्तर तक ही सीमित था. 27 सितंबर 1972 को, वह ब्रोंकाइटिस से जटिलताओं की मृत्यु हो गई.

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