सूचना स्रोत | Information Sources

सूचना स्रोतों को सन्दर्भ ग्रंथों के नाम से जाना जाता है । सन्दर्भ ग्रन्थ साधारणतः किसी विषय या तथ्य का स्पष्टीकरण करने में सहायक बिन्दु होता है। अनेक विद्वानो ने सन्दर्भ ग्रन्थ की परिभाषा अपनी अपनी शैली में प्रस्तुत की है ।

सूचना स्रोत  |  Information Sources
सूचना स्रोत  |  Information Sources

लुईस शोर्स के अनुसार सन्दर्भ ग्रन्थ उसे कहते हैं ‘‘जिसे विशेष सूचना प्राप्त करने हेतु उपयोग किया जाता हैं दूसरे शब्दों में सन्दर्भ ग्रन्थो का उपयोग सीमित होताहै।

अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसियेशन ग्लोसरी ऑफ लाइब्रेरी टर्मस (ALA Glossary of Library Terms) में सन्दर्भ ग्रन्थ को इस प्रकार परिभाषित किया गया है “निश्चित विषयों की जानकारी हेतु इसकी रचना विशिष्ट संयोजन पद्धति के द्वारा की जाती है । इसका अध्ययन निरन्तर कदाचित ही किया जाता है और इसका उपयोग पुस्तकालय के अन्दर सीमित रहता है।

सूचना स्रोतों की आवश्यकता (Needs for InformationSources)

आधुनिक सूचना काल में सूचना का महत्व इस प्रकार बढ़ गया है कि सूचना न केवल साधन बल्कि वस्तु का रूप ग्रहण कर गई है । कौनसी सूचना एकत्र करना है, कैसे एकत्र करना है। उसकी तैयारी कैसे करनी है, उसका प्रयोग किस प्रकार से करना है आदि बातें कुछ ऐसी है जिनके कारण सन्दर्भ ग्रन्थों की आवश्यकता बढ़ गयी है । पुस्तकालयों में विभिन्न प्रकार के पाठकों जैसे - विदयार्थी, अध्यापक, वैज्ञानिक, शिल्प वैज्ञानिक, योजनाकार, नीतिकार आदि की सूचना अवश्यकताओं में न केवल वृद्धि हुई है बल्कि वे जटिल भी होती जा रही है । उपर्युक्त के अतिरिक्त पाठकों की अन्य सूचना आवश्यकताएँ भी होती है जिनमें निम्न शामिल हो सकती हैं .

किसी विशिष्ट क्षेत्र में तुरन्त सूचना प्राप्त करना ।

किसी विषय पर नवीनतम सूचना प्राप्त करने में मुश्किल आना ।

सूचना सामग्री के लगे अम्बार में से उचित सूचना का चयन करना, आदि ।

पाठकों की सूचना सम्बन्धी आवश्यकताएँ तभी पूरी की जा सकती है जब उचित तथा आधुनिक सूचना स्रोतों का प्रयोग किया जाए । सूचना स्रोतों के प्रयोग से ही पुस्तकालय में पुस्तकालयाध्यक्ष सूचना संग्रहीत करके एक सूचना बैंक बना सकता है जिसके प्रयोग से पाठकों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है । दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि सही ढंग से सन्दर्भ सेवा प्रस्तुत करने हेतु पुस्तकालयाध्यक्ष एव अन्य कर्मचारियो को सूचना स्रोतों का न केवल अच्छा संग्रह संकलन करना चाहिए बल्कि उनके बारे में पूरी पूरी जानकारी भी होना अवश्यक है । सूचना स्रोतों सम्बन्धी यह ज्ञान ही पाठकों की सूचना अवश्यकताओं को पूरा करने में सहयोग प्रदान करेगा ।

सूचना स्रोतों के वर्ग (Categories of Information Sources)

एक अच्छे पुस्तकालय में सभी प्रकार के सूचना स्रोत एकत्र किये जाते हैं । यह सूचना स्त्रोत अनेक रूपों में उपलब्ध हैं जैसे - शब्द कोश, विश्वकोश, वार्षिकी, निर्देशिका, जीवनी स्रोत, भौगोलिक स्रोत, ग्रन्य सूची, अनुक्रमणात्मक पत्रिका, सारांश पत्रिका, सांख्यिकीय स्रोत इत्यादि । इनकी संख्या इतनी अधिक है कि किसी भी पुस्तकालय में सभी सन्दर्भ ग्रन्य संकलित नहीं किये जा सकते । दूसरे इन सन्दर्भ ग्रन्थों की कोई एक विश्व प्रसिद्ध सूची नहीं है जो आदर्श स्रोतों सम्बन्धी सूचना प्रदान कर सके । हालांकि दो ऐसी विश्व प्रसिद्ध सूचियाँ है (1) गाइड टू रेफरेंस बुक्स (Guide to Reference Books), जिसमें विशेषकर अमेरिकी सन्दर्भ स्रोतों को शामिल किया गया है, (2) गाईड टू रेफरेंस मेटेरियल (Guide to Reference Material), जिसमें अधिकतर ब्रिटिश स्रोत शामिल किये गये हैं । दोनों में भारत तथा अन्य एशियाई देशों के सन्दर्भ ग्रन्थों के बारे में बहुत ही कम सूचना मिलती

सन्दर्भ ग्रन्थों को विद्वानों ने विभिन्न वर्गों में बांटा है जो इस प्रकार है .

सूचना स्रोतों के स्वरूप और प्रकार -

भौतिक विशेषताओं (Physical Characteristics) के आधार पर

डॉ रंगनाथन द्वारा पुस्तकालय प्रलेखों को उसके भौतिक विषेशताओं (Physical Characteristics) के आधार पर इस प्रकार बांटा गया है:

1 Conventional documents – परमपरागत सूचना स्त्रोत जो परमपरागत रूप से चले आ रहे होते है इस तरह के प्रलेख पुस्तकालय के परंपरागत प्रलेख होते है जो साधारणतः लिखित या मुद्रित इनका स्वरूप में होता है परमपरागत सूचना स्त्रोत कहलाते है। जैसे - Book, Periodicals,Maps, Atlases आदि।

2 Neo - conventional - इस तरह के प्रलेख पुस्तकालय के परंपरागत प्रलेख की ही भांति लिखित या मुद्रित स्वरूप में होते है परंतु इसमें विशिष्ट प्रकार के सूचना रहती है जैसे  Standards, Specifications, Patents, Data, आदि।

3 Non – conventional documents - जो साधारणतः लिखित या मुद्रित स्वरूप में नहीं होते है बल्कि कम्प्युटरीकृत और मशीन पठनीय स्वरूप में होती है। जैसे -CD, Disk, Microforms आदि ।

4  Meta - documents - इस तरह के प्रलेख वो होते है जो मानव मतिष्क पर सीधे प्रभाव डालता है। जैसे -Instrument technology, Photography, आदि।

सूचना विशेषताओं (Information Characteristics) के आधार पर

पुस्तकालय प्रलेख का सूचना विशेषताओं (Information Characteristics) के आधार पर विभाजन Hanson and Grogan के सिद्धांतों पर आधारित है। Hanson ने प्रलेखों को दो भागों में विभाजित किया था - प्राथमिक और द्वितीयक (Primary and Secondary) प्रलेख  Gorgan द्वारा इसे पुनः तीन भागों में प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक (Primary, Secondary and Tertiary) प्रलेख या सूचना स्रोतों में विभाजित किया ।

हेनसन (C.W. Hanson) ने सन्दर्भ ग्रन्थों को उनके गुणों के आधार पर दो वर्गों में बाटा है जो निम्न प्रकार से हैं

1 प्राथमिक स्त्रोत (Primary Sources) - यह प्राकृतिक रूप से मौलिक स्त्रोत होते हैं । इन स्त्रोतों से किसी विषय का नया ज्ञान या पुराने ज्ञान की नवीन व्याख्या प्रस्तुत की जाती है । इनमें मूल खोज तथा विकास के प्रथम प्रकाशित आलेख होते हैं । कई बार तो सूचना के केवल ये ही स्रोत उपलब्ध होते हैं । हेनसन ने इस वर्ग में ऐसे स्रोत सम्मिलित किये हैं जैसे पुस्तक, सामयिक प्रकाशन, रिपोर्ट, एकस्व, शोध प्रबन्ध, व्यापारिक साहित्य, मानक आदि ।

2 द्वितीयक स्रोत ¼ Secondary Sources ½ -. द्वितीयक स्रोतों में नया ज्ञान तथा मौलिक सूचना नहीं होती । यह पाठक को प्राथमिकस्रोतों के लिये मार्गदर्शन करते हैं । इनका संकलन भी प्राथमिक स्रोतों से ही किया जाता है । दवितीयक स्रोत प्राथमिक स्रोतों की अनुकूल ढंग से व्यवस्था करते हैं ताकि उनका सही प्रयोग किया जा सके  ऐसी मूल सूचना को छांटकर, परिवर्तन करके, पुनः क्रमबद्ध करके सूचना को आसानी से ढूंढा जा सकता है । हेनसन ने इस वर्ग में ऐसे सन्दर्भ स्रोत  सम्मिलित किये हैं - जैसे ग्रन्थ सूची, अनुक्रमणिका, सारांश पुस्तक सूची, आदि ।

परन्तु इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि हेनसन की विभाजन सही नहीं है क्योंकि उसने इन स्रोतों को कई स्थानों पर आपस में शामिल कर दिया है ।

इसीलिये  से विद्वानों ने इन स्रोत को तीन वर्गों में बांटा है  इन विद्वानों में डेनिस ग्रोगेन (Denis Grogan) भी शामिल है जो मानते है कि प्रलेखों को उनके पुनसंगठित के आधार पर बांटा जाना चाहिए ।

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