प्रथम सुत्र:- पुस्तके उपयोगार्थ है
प्रथम सुत्र:-
1. पुस्तकालय का स्थान
2. पुस्तकालय का समय
3. कर्मचारी
4. नियम
5. पुस्तकालय भवन की स्थिति
6. उपस्कर/फर्नीचर
7. साज-सज्जा
8. पुस्तक चयन
9. पुस्तको को संरक्षित रखने हेतु प्रथम सुत्र
10. पुस्तकालय कार्य घण्टो पर जोर देता है।
डाॅ.रंगनाथन प्रथम सुत्रो के लिए लिखते है की कितना मामूली कितना छोटा पर कितना तुच्छ है। यह सुत्र साधारण दिखाई देता है मगर इसमे गहन दार्षनिक विचार है।
प्रथम सुत्र का विचार डाॅ.रंगनाथन के बचपन के गुरू एडवर्ड बी राॅस ने दिया। डाॅ. रंगनाथन को प्रथम सुत्र का निरूपण इसलिए करना पडा क्योकि वह इंग्लैण्ड दौरे के बीच रंगनाथन ने ब्रिटिश म्यूजियम मे दुलर्भ ग्रंथो को निधानियो के साथ जंजीर से बंधा पाया एवं पुस्तके उपलब्ध नही हो पाती थी।
पुस्तकालय अध्यक्ष को पुस्तकालय का अभिरक्षक माना जाता है।
पुस्तकालय भवन एकान्त मे होना चाहिये षोर-गुल नही होना चाहिये। पुस्तकालय भवन को केन्द्र मे स्थापित करना चाहिये। डाॅ. रंगनाथन का कहना है कि पुस्तकालय खोलने के लिए आदर्ष स्थान वह है जहाॅ लोग आते जाते रहते हो।
पुस्तकालय के खुलने व बन्द होने का समय यूजर के अनुसार होना चाहिये जिससे पुस्तको का अधिक से अधिक उपयोग हो सके। सार्वजनिक पुस्तकालय सांयकाल मे अवष्य खुलने चाहिये क्योकि उसके पाठको के पास शाम का समय ही खाली है। षैक्षणिक पुस्तकालय को विष्वविद्यालय/महाविद्यालय समय के बाद भी खोला जाना चाहिये।
पुस्तकालय भवन आकर्षक स्वच्छ तथा कार्यषील होना चाहिये एवं हवा व प्रकाष की उचित व्यवस्था होनी चाहिये।
पुस्तकालय कर्मचारी प्रषिक्षित होना चाहिये तथा सुनिष्चित योग्यताएं होनी चाहिये।
द्वितीय सुत्र प्रत्येक पाठक को उसकी पुस्तक मिले।
द्वितीय सुत्र:-
1 राज्य का कर्तव्य
2 अधिकारी का कर्तव्य
3 कर्मचारी का कर्तव्य
4 पाठक का कर्तव्य
5 पुस्तकालय नेटवर्क पर जोर
6 पाठक की स्वतंत्रता के बारे मे समर्थन
7 अधिनियम पर जोर
8 अन्धो के लिए
9 अपूपा
पुस्तकालय सेवा प्रदान करने के लिए राज्य को संविधान का सहारा प्राप्त करना चाहिये। इसके लिए आवष्यक अधिनियम पारित करना एवं आवष्यकता पडने पर इसमे समय समय पर संषोधन करते रहना होगा।
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