पुस्तकालय आन्दोलन in Hindi

प्राग्वेेदिक काल:-

इस युग का आधार सिंधु सभ्यता है। हडप्पा व मोहनजोदडो की खुदाई मे एक सुव्यवस्थित सभ्यता का पता लगा। हडप्पा नामक स्थल की खुदाई सर्वप्रथम हुई। इस सभ्यता की लिपी को अभी तक पढ नही जा सका। इस लिपी मे लगभग 400 अक्षर/वर्ण है। यह लिपी दायंे से बायें एवं फिर बायंे से दायंे पढी जा सकती है। हडप्पा की लिपी को बु्रस्टाफेडन की लिप कहा जाता है।

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पुस्तकालय आन्दोलन 
वैदिक काल:- 
इस काल मे भोजपत्रो पर वेदपुराण, महाभारत, रामायण जैसे श्रेष्ठ ग्रंथो का सजृन हुआ है। 2500 ई.पू. के आसपास आर्य भारत आये। आर्यो की लिपी ब्रह्मामी लिपी थी। संस्कृत को सभी भाषाओ की जननी कहा गया है।

बौद्ध युग:-

(500 - 1200 ई.पू.) बौद्ध के प्रमुख  शिक्षा केन्द्र - तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशीला तथा वल्लभी थे।  सबसे प्राचीन बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक है। बौद्ध ग्रंथो की भाषा पाली है। बौद्ध ग्रंथो के संग्रह की परम्परा कनिष्क के समय से सम्राट कनिष्क ने पारसु नामक विद्वान की सहायता से सम्पूर्ण बोध ग्रंथो को ताम्रपत्र पर उत्किर्ण करवाया था।

(1) नालन्दा विश्वविद्यालय:- यह धर्मगंज के नाम से विख्यात था। नालन्दा को तत्कालिक सम्राट धर्मपाल का संरक्षण प्राप्त है। स्थापित - कुमार गुप्त व शंकरा द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है। नालन्दा से भारत के दो महान ऋषि प्रथम महावीर स्वामी व गौत्तम बुद्ध पूर्ण रूप से सम्बन्धित थे।

इसमे 3 कक्ष थे -
  1. रत्नासागर - यह नौ मंजिला इमारत थी जिसमे धर्मग्रंथ तथा तांत्रिक विद्या का संकलन था
  2. रत्नोद्धि - सबसे बडा़
  3. रत्नरंजिका -
500 ग्रंथो मे नालन्दा का वर्णन मिलता है।
चीनी यात्री फायान हेंग्सान मे चीन मे ही नालन्दा की प्रषंसा सुनी थी। नालन्दा के लिए फायान ने लिखा है कि नालन्दा एक विषाल शिक्षा केन्द्र था और वहाॅ के पुस्तकालय मे हजारो विद्यार्थी प्रतिलिपि करने का कार्य करते थे। फायान जब स्वदेश  लौटा तो 520 हस्तलिखित ग्रंथ तथा 657 विभिन्न विषयो की प्रतिलिपियां ली।

इत्सिंग ने नालन्दा के लिए कहा है कि ग्रंथ की प्रतिलिपि करना पुण्य का कार्य माना जाता है यह 400 प्रतिलिपि करा कर अपने साथ ले गया।

हुण नरेश  मिहिर कुल ने सबसे पहले इस पुस्तकालय को क्षति पहुंचायी किन्तु कन्नोज के शासक सम्राट हर्षवर्धन ने इसका पुनः निर्माण करवाया। था। बख्तियार खिलजी ने इस पुस्तकालय पर आक्रमण कर आग लगा दी थी और यह 6 महीनो तक जलता रहा। बख्तियार खिलजी के नष्ट करने के उपरान्त नालन्दा के जीर्णोद्वार मुद्रित भद्र नामक एक महात्मा ने किया किन्तु उसका स्वर्ण समय लौट ना पाया।

(2) विक्रमशीला:- भागलपुर बिहार - धर्मपाल (संरक्षक) इसका निर्माण पाल वंश  के राजा ने करवाया। इस पुस्तकालय के सबसे बडे विद्वान दीपकर श्री ज्ञान जी थे। बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर विक्रमशीला को नष्ट किया और वहाॅ के पण्डितो की भी हत्या कर दी। जिससे बची हुई पाण्डूलिपि को समझने वाला कोई नही रहा।

(3) तक्षषीला:- गांधार (पाकिस्तान)

(4) वल्लभी पुस्तकालय - वल्लभी गुजरात का एक विशाल पुस्तकालय था। इसकी स्थापना दीक्षा नामक राजकुमारी ने करवायी थी। राजा गृहसेन इस पुस्तकालय का खर्चा चलाते थे।

मुगल काल


मुगलो का पुस्तक प्रेम विख्यात माना जाता है। बाबर पुस्तक प्रेमी था। बाबर की बेटी गुलबदम का एक निजी पुस्तकालय था। बाबर का उत्तराधिकारी हूॅूमायु भी विद्या पे्रमी षासक था। हूॅमायु ने दिल्ली मे एक विशाल पुस्तकालय का निर्माण करवाया दीन-ए-पनाह। हूॅमायु की मृत्यु इसी पुस्तकालय की सीढीयो से फिसलने से हुई थी। अकबर ने तीन प्रकार के व्यक्तिगत, षाही और शेक्षणिक पुस्तकालय स्थापित करवाये। अकबर ने अपने विश्वसनीय दरबारी फैजी के अधीन एक अनुवाद विभाग स्थापित करवाया। अकबर के पुस्तकालय मे लगभग 25000 ग्रंथ थे। अकबर के पुस्तकालय अध्यक्ष मुलापीर मोहम्मद थे। जहाॅगीर को भी पुस्तको व चित्रकला से प्रेम था। जहाॅगीर का आदेष था कि जो सम्पत्ति लावारिस हो उसका उपयोग राज्य मे पुस्तकालय विद्यालय के निर्माण मे किया जाये। ओरंगजेब विद्या प्रेमी व अध्ययन का षौकीन था औरंगजेब सम्पूर्ण कुरान कंठस्थ था।

औरंगजेब के दो पुत्रियां थी (1) मेहरूनिशा  (2) जेबुनिशा  भी ये अपनेे समय की बडी ही विदूषी राजकुमारियां थी। जिन्हे ग्रंथो के अध्ययन, संकलन तथा विभिन्न भाषाओ से अनुवाद कराने का बडा शोक था।

जेबुनिषा का अपना एक विशिष्ट संकलन का पुस्तकालय हिन्दी की कविता मे विशिष्ट रूचि भी थी।

शाहजहाॅ का पुत्र दारासिकोह को पुस्तक के संकलन करने तथा संस्कृत से अनुवाद करने का शोक था। इसने गीता तथा उपनिषदो का अनुवाद फारसी भाषा मे किया।

आदिलशाही पुस्तकालय:- बीजापुर का शासक इब्राइम आदिलशाह द्वितीय महान विद्या नामी शासक था। इसने आदिलशाही पुस्तकालय की स्थापना की तथा ओरंगजेब के आक्रमण के दौरान यह पुस्तकालय नष्ट हो गया।

मुगलकाल मे हिन्दु राजा जैसे मैसूर का महाराजा चिकदेव राय तथा जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह ने भी पुस्तकालय स्थापित किया।

टीपू सुल्तान ने भी मैसूर मे अपना निजी पुस्तकालय स्थापित किया। इसके पुस्तकालय मे अरबी फारसी व हिन्दी मे लिखे हुए इस्लामी शास्त्र पर 2000 पुस्तके थी।

सन्धि काल

संस्कृत मे संस्कृत पुस्तकालय की स्थापना की गई।

ब्रिटिष शासन काल


मद्रास मे फोर्ट सेन्ट जार्ज मे कम्पनी का पहला पुस्तकालय स्थापित किया।  1835 मे कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना की। 1891 मे इम्पीरियल लाइब्रेरी की स्थापना लार्ड कर्जन द्वारा की गई। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 1813 मे भारतीय शिक्षा के उत्थान हेतु 1 लाख रूपये खर्च करने का पत्र जारी किया। 18 फरवरी 1901 को इण्डिया हाउस लंदन मे इण्डिया आॅफिस लाइब्रेरी की स्थापना की गई। 1854 मे वुड घोषणा पत्र जारी हुआ। 1867 मे प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेषन आॅफ बुक एक्ट पारित किया गया। जिसके अनुसार देष मे प्रकाषित प्रत्येक पुस्तक की एक प्रति सरकार को देनी पडती है। 1890 मे कोन्नेमरा पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना - चेन्नई, 1891 मे खुदाबक्ष ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी - बिहार

डाॅ. सच्चिदानन्द सिन्हा ने 1924 मे अपनी पत्नि श्री मति राधिका रानी सिन्हा की स्मृति मे सिन्हा लाइब्रेरी की स्थापना बिहार मे की। 1907 मे बडौदा के महाराजा सियाजी राव गायकवाड़ तृतीय ने प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य किया। निःषुल्क शिक्षा का प्रावधान (अपने राज्य मे सबसे पहले)

भारत मे पुस्तकालय आन्दोलन मे पुस्तकालय प्रषिक्षण का महत्वपूर्ण योगदान रहा। सबसे पहले W.B.Borden  ने जो मेल्विन डीवी का शिष्य था। 1911 मे जन पुस्तकालय के कर्मचारियो को पुस्तकालय विज्ञान का प्रशिक्षण देना शुरू किया जो बहुत दिनो तक नही चला।

1915 मे पंजाब विष्वविद्यालय मे डिकिन्सन (जो मेल्विन का शिष्य) था पुस्तकालय विज्ञान का प्रषिक्षण आरम्भ किया।  यह प्रशिक्षण 1947 तक चलता रहा। तीसरा प्रयास डाॅ.रंगनाथन ने 1928 मे मद्रास पुस्तकालय संघ द्वारा शुरू किया। 1930 तक यह प्रशिक्षण चलता रहा। 1935 मे बंगाल पुस्तकालय संघ मे K.M. असादुल्ला के संघ मे पुस्तकालय प्रशिक्षण शुरू किया 1945 तक 6 माह का।

1937 मे मद्रास मे स्नातक स्तर का एक वर्ष का डिप्लोमा पाठ्य क्रम मे शामिल किया। 1947 मे अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी B.Lib. का प्रारम्भ किया।

ब्रिटिश काल मे तीन आयोग आये -

(1) हन्टर आयोग  - 1882  - भारतीय शिक्षा आयोग   
(2) रेले कमीषन   - 1902  - भारतीय विष्वविद्यालय आयोग 
(3) संेडलर कमीषन - 1917 -  संेडलर आयोग - कलकत्ता आयोग

193़9 मे ए.ए.फैजी की अध्यक्षता मे बोम्बे सरकार ने एक लाइब्रेरी डेवलपमेन्ट कमैटी बनायी।
1928 मे मद्रास पुस्तकालय संघ की स्थापना की गई एवं सर्वप्रथम चल पुस्तकालय की स्थापना भारत मे इसी संघ के द्वारा की गई। मन्नारगुडी नामक शहर जो तंन्जौर जिले मे 1931 मे बैलगाडी द्वारा चल पुस्तकाल सेवा प्रदान की गई। 1914 मे विजयवाडा आन्ध्रप्रदेश  मे एक पुस्तक सम्मेलन का आयोजन हुआ इसमे आन्ध्रप्रदेश  पुस्तकालय संघ के उद्घाटन की घोषणा की गई। 1915 मे फैक्स पालन स्थित केन्द्रीय पुस्तकालय ने ग्रामीण यात्रियो के लिए नौका पुस्तकालय की शुरूआत की। 1918 मे पंजाब पुस्तकालय संघ द्वारा अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित किया। 1930 मे लाहौर मे माॅडल लाइब्रेरी नामक त्रैमासिक पत्रिका का इस संघ द्वारा शुभांरभ किया गया। 1929 मे बंगाल पुस्तकालय संघ स्थापित किया गया। जिसे बाद मे बंाग्ला पुस्तकालय परिषद नाम दिया। 1945 मे केरल पुस्तकालय संघ की स्थापना की गई। 1848 मे कर्नाटक मे बेलगाॅव के कलेक्टर जेडी इनवेन्टरी ने बेलगाॅव लेटीव जर्नल लाइबे्ररी स्थापित की।

पुस्तकालय आन्दोलन मे डाॅ.रंगनाथन का योगदान एवं अन्य नेता -
डाॅ.रंगनाथन का ग्रंथालय मे महान योगदान देखकर भारत सरकार ने 1957 मे पद्म श्री की उपाधि प्रदान की। डाॅ.रंगनाथन का सर्वप्रथम प्रयास भारतीय पुस्तकालय संघ की स्थापना करना था। रंगनाथन के प्रयास से ही 1954 मे डीलीवरी आॅफ बुक्स एक्ट पारित किया गया। 1962 मे बेंगलोर मे प्रलेखन के क्षैत्र मे प्रषिक्षण एवं अनुसंधान को प्रोत्साहन करने हेतु DRTC की स्थापना की गई। इनके अतिरिक्त D.N. मार्सल, जगदीष शरण षर्मा पी.एन.कौला, नीलमेघन, पी.मंगला, बशीरूदीन एवं एम.दास गुप्ता आदि के द्वारा भारतीय पुस्तकालय आंदोलन मे योगदान दिया।

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