परिग्रहण रजिस्टर | Accession Register in Hindi


परिग्रहण रजिस्टर:- पुस्तकालय मे अधिग्रहण की गई पुस्तको का स्थित लेखा रखा जाता है। पुस्तकालय मे क्रय की गई अथवा उपहार स्वरूप प्राप्त की गई प्रत्येक पुस्तक तिथिवार सम्पूर्ण विवरण एक पंजिका मे अंकित किया जाता है। इस पंजिका को परिग्रहण पंजिका कहते है। यह पंजिका पुस्तकालय का स्थाई अभिलेख होता है। परिग्रहण पंजिका मे प्रयुक्त कागज तथा उच्च कोटि की जिल्द होनी चाहिये। पीरग्रहण पत्रिका मे बायें तथा दायें पृष्ठो पर अनेक खाने बने होते है। इन खानो/स्तम्भ/काॅलन मे कुछ फेरबदल ग्रंथालय अपनी आवश्यकता के अनुसार कर सकता है।

Library Science With Rakesh Meena
परिग्रहण रजिस्टर
परिग्रहण पत्रिका की उपयोगिता
   लेखा परिक्षण के लिए यह बहुत आवश्यक है।
   भण्डार सत्यापन के लिए परिग्रहण पंजिका का प्रयोग होता है।
   यह मात्र ऐया प्रलेख है जिसमे पुस्तक की सम्पूर्ण जानकारी एक ही स्थान पर मिल जाती है।
   प्रमाणिकरण एवं जाॅंच के लिए लेखा परीक्षक इसी का प्रयोग करते है।
   पुस्तकालय मे पुस्तको को नियंत्रित करने के लिए सहायक है।

आवश्यकता/महत्व
   भण्डार सत्यापन के लिए
   ग्रंथालय संग्रह मे वृद्धि की जानकारी
   पुस्तक के पुस्तालय मे उपस्थित न होने पर ग्रंथ के पूर्ण विवरण की जानकारी
   पुस्तकातय सम्पत्ति घोषित करने के लिए
   प्रमाणिक एवं स्थाई लेखा
   ग्रंथ प्राप्ति से निस्कासन का विवरण

परिग्रहण पंजिका मे निम्नलिखित खाने होते है -   

1. परिग्रहण/तिथि:- साइज 16 x 13 होती है। इस काॅलन का उपयोग दिनांक को अंकित करने के लिए किया जाता है। जिस दिनांक को परिग्रहणकर्ता द्वारा पुस्तक का पूर्ण विवरण पंजिका मे अंकित किया जाता है। इस काॅलम के द्वारा ही ग्रंथालय मे ग्रंथो के विकास काल का क्रम ज्ञात होता है। इस काॅलम को प्रथम काॅलम परिग्रहण संख्याा के साथ भी जोडा जा सकता है।


2- Accession Number ः- इस काॅलम मे साधारण क्रम मे संख्या अंकित की जाती है। प्रत्येक पुस्तक को क्रमांक प्रदान किये जाते है। सही क्रमांक पुस्तको की परिग्रहण संख्याा है। यही संख्या पुस्तक के ग्रंथालय मे उपलब्ध न होने की स्थ्तिि मे पुस्तक का सम्पूर्ण विवरण प्रदान करती है।

3. लेखक का नाम:- लेखक का नाम सुचिकरण के नियमो के अनुसार अथवा मुक्ति रूप मे ही अंकित किया जाता है।

4. आख्या:- इस काॅलम मे पुस्तक की आख्या से लिखा जाता है। यदि आख्या लम्बी हो तो उसे छोटे रूप मे भी लिखा जा सकता है। आख्या के प्रारम्भ मे A, An, The आदि शब्द लिखे हो तोे उन्हे हटाकर काॅलम मे अंकित किया जाता है।

5. प्रकाशन वर्ष:- इस काॅलन मे ग्रंथ केप प्रकाशन वर्ष को लिखा जाता है इसलिए पुस्तका का प्रकाशन वर्ष अंकित करना इसलिए आवश्यक है क्योकि पुस्तकेे प्रकाशित होने के काफी समय बाद भी अर्जित की जा सकती है।

6. प्रकाशक का नाम:- आख्या पृष्ठ पर मुद्रित प्रकाशक के नाम व स्थान संक्षिप्त मे इस काॅलम मे लिख दिये जाते हैै।
7. पृष्ठ संख्या/आकार:- इस काॅलम मे ग्रंथ की पृष्ठ संख्या तथा उसका आकार अंकित किया जाता है। इसमे बहुत छोटी व बहुत बडी पुस्तको को निधानी मे अलग-अलग रखने की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। पुस्तका का आकार सेन्टीमीटर मे लिखा जाता है।

8. स्त्रोत:- जब पुस्तक प्रकाशक अथवा विक्रेता से क्रय की जाती है या पुस्तकालय मे किसी संस्था द्वारा उपहार स्वरूप मे प्राप्त की जाती है तो उसके नाम व पते की जानकारी इस काॅलम मे लिखी जाती है।

9. बिल नंबर व दिनांक:- इस काॅलम मे पुस्तक विक्रेता द्वारा प्रस्तुत बिल नंबर व दिनांक लिखे होते है।

10. संस्करण वर्ष:- इस काॅलम मे ग्रंथ के प्रथम संस्करण के अतिरिक्त यदि कोई अन्य संस्करण हो तो उसकी जानकारी निहित की जाती है।

11. पुस्तक का वास्तविक मुल्य:- इस काॅलम मे पुस्तक के वास्तविक मुल्य जो पुस्तक पर मुद्रित होता है उसे अंकित कर लिया जाता है।
12- Call Number ः- यह कार्य वर्गीकरण व सूचिकरण समाप्त होने के पश्चात शेल्फ लिस्ट की सहायता से बाद मे किया जाता है। इस काॅलम मे वर्गीकरण द्वारा ग्रंथ को प्रदान किये गये वर्गांक व ग्रंथ अंक को इसमेे लिखा जाता है। काॅल नम्बर पेन्सिल से लिखा जाता है।

13. खण्ड संख्या:- प्रत्येक खण्ड को अलग-अलग परिग्रहण संख्या प्रदान की जाती है। खण्ड संख्या मे अतिमहत्वपूर्ण जानकारी होती है। यदि पुस्तक एक से अधिक खण्ड की है तो सम्बन्धित संख्या इस खण्ड मे अंकित की जाती है।

14 प्रत्याहरण संख्या व दिनांक:- जब पुस्तकालय से पुस्तक के खो जाने, पूरी तरह फट जाने पर और उपयोग योग्य न होने पर पुस्तकालय से हटा दिया जाता है या निकासित कर दिया जाता है। निकासित पुस्तक का सम्पूर्ण विवरण जैसे प्रत्याहरण पंजिका का क्रमांक व तिथि इस काॅलम मे दर्ज कर ली जाती है।

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