सन्दर्भ शब्द की उत्पत्ति - संस्कृत धातु दृभ सम उपसर्ग लागकर बना है संस्कृत भाषा के अनुसार इसका अर्थ है कि एक साथ बांधने वाला संयोजित करने वाला मिलाने वाला बुनने वाला होता है।
पुस्तकालय में पाठक और पाठ्य सामग्री के बीच सम्पर्क स्थापित करने के लिए प्रयुक्त सेवा को अभिव्यक्त करने के लिए संदर्भ सेवा पद का प्रयोग किया जाता है। ताकि पाठकों को अपने नवीन विषय के बारें में जानकारी उपलब्ध हो सके
सन्दर्भ सेवा |
परिभाषाएँः-
ड़ाॅक्टर एस.आर. रंगनाथन के अनुसार:- पाठक एवं पाठ्य सामग्री के मध्य संबंध स्थापित करने की प्रक्रिया तथा व्यक्तिगत सेवा संदर्भ सेवा कहलाती है।
जेम्स आई वायर के अनुसार:- अध्ययन व अनुसंधान हेतु पुस्तकालय की पाठ्य साामग्री को समझने के लिए दी गई प्रत्यक्ष सहानुभूति और अनौपचारिक व्यक्तिगत सहायता को संदर्भ सेवा कहते है।
अमेरिकन पुस्तकालय संघ के अनुसार:- पुस्तकालय गतिविधियों का वह पक्ष है जो अध्ययन एवं शोध के लिए पुस्तकालय साधनों के उपयोग में तथा सूचना प्राप्त करने में पाठकों की व्यक्तिगत सहायता करने से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित है संदर्भ कार्य कहलाता है।
लुईस शेयर्स के अनुसार:- लुईस ने अपने संदर्भ सेवा को सैन्य बल के समान तुलना की है। अर्थात सन्दर्भ सेवा फौज के लिए गुप्तचर का काम करती है।
सन्दर्भ सेवा की उत्पत्ति सर्वप्रथम अमेरिका में सन्दर्भ सेवा सार्वजनिक पुस्तकालय 1875 में हुई सन्दर्भ सेवा के जन्मदाता रोथेस्टिंन को कहा जाता है।
उपयोगकर्ताओं को व्यक्तिगत सहायता के कार्यक्रम का प्रथम वोरेस्टर फ्री पब्लिक लाइबे्ररी के सैमुुअल स्पेव ग्रीन ने दिया था। पुस्तकालय के व्यक्तिगत संबंध के औचित्य पर बहस फिलाडेल्फिया में 1876 में हुई थी
1876 अमेरिका में गं्रथालय संघ के सम्मेलन में सन्दर्भ सेवा ने अपना एक विशिष्ट स्थान प्राप्त कर लिया था संदर्भ सेवा को 1915 में सभी प्रकार के पुस्तकालयों में आवश्यक सेवा समझी जाने लगी
भारत में ड़ाॅक्टर रंगनाथन पुस्तकालयों में संदर्भ सेवा को व्यवहार में लाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया
1930 में मद्रास विश्वविद्यालय पुस्तकालय में संदर्भ सेवा का विकास प्रारंभ हो गया था।
5 युवा स्नातकों को संदर्भ पुस्तकालय का कार्य सौंपा गया इसके द्वारा ड़ाॅक्टर रंगनाथन द्वारा दिए गए लघु प्रशिक्षण पाठयक्रम की सहायता से संदर्भ सेवा की शुरूआत की
सर्वप्रथम संदर्भ पुस्तकालय अध्यक्ष का पद 1937 में मद्रास विश्वविद्यालय पुस्तकालय में स्वीकृत हुआ
मद्रास पुस्तकालय प्रथम ऐसा पुुस्तकालय था। जिसमें पाठकों को नियमित रूप से संदर्भ सेवा देने का प्रयास किया गया
संदर्भ सेवा की विशेषता:-
1. संदर्भ सेवा पुस्तकालय की पाठ्य सामग्र्री का उपयोग करने में पाठक को दी गई व्यक्तिगत सेवा है
2. पुस्तकालय में संदर्भ सेवा उसको प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित कर्मचारी होते है।
3. संदर्भ सेवा के अन्तर्गत दी गई सूचना विशिष्ट प्रकार की होती है
4. पाठकों के प्रश्नों को समझ कर सही पाठय सामग्री देने में सहायक सिद्ध होते है।
संदर्भ सेवा के सिद्धान्तः-
संदर्भ सेवा सिद्धान्त के लिए प्रथम प्रयास जेम्स आई वायर ने 1930 में किया था यह सिद्धान्त असफल रहा क्योंकि पूछताछ कार्य तक ही सीमित था
1940 में रंगनाथन की पुस्तक संदर्भ सेवा एवं गं्रथालय सूची का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ संदर्भ सेवा गं्रथआलय नियमों का अंतिम लक्ष्य है।
1966 में जै, सी शेरा ने लिखा संदर्भ सेवा का उद्धव अव्यवस्थित रूप से हुआ है।
बनार्ड़ बेवरेक अनुसार पुस्तकालय अध्यक्ष एवं उपयोगकर्ताओं के परस्पर संबंधों की गुणवता का अध्ययन ही संदर्भ सेवा के सिद्धान्तों का केन्द्र बिन्दु है
जेम्स आई वायर ने अपनी पुस्तक संदर्भ कार्य में संदर्भ सेवा के तीन सिद्धान्त बताए है।
1. अनुदार सिद्धान्त:- अनुदार सिद्धान्त पाठक को व्यक्तिगत सहायता प्रदान करने से संबंधित था। यह सिद्धान्त निर्देष तक सिमित है। क्योकि सिद्धांत पाठक को आत्मनिर्भर बनाने से रोकता है। इसलिए इस सिद्धान्त मे पाठक को मार्ग बता देना सही है।
2. उदार सिद्धान्त:- उद्धार सिद्धान्त के अनुसार संदर्भ पुस्तकालय अध्यक्ष को पाठक की हर संभव सहायता करनी चाहिए। यदि पुस्तकालय मे कोई ग्रन्थ उपलब्ध ना हो तो अन्त पुस्तकालय ऋण के माध्यम से ग्रन्थ उपलब्ध करवा देना चाहिए।
3. माध्यमिक सिद्धान्त:-माध्यमिक सिद्धान्त के अनुसार सिद्धान्त और उद्धार सिद्धान्त दोंनों के बीच संबंध स्थापित करता है इसलिए इसे माध्यमिक सिद्धान्त कहते है।
सैमुअल रोतेस्टिंग संदर्भ सेवा के तीन सिद्धान्त बताए है।
1. अल्पतम सिद्धान्त:- पुस्तकालय संदर्भ सेवा कर्मचारी उपलब्ध नहीं होता है। तो संदर्भ सेवा का कार्य दूसरे कर्मचारियों को दे दिया जाता है। जिसमें आत्मविश्वास को योग्यता की कमी होती है। तो उसमें उत्तर न दे पाने का डर रहता है और वह स्वयं को पाठकों से जितना संभव को दूर रखने का प्रयास करेगा पाठकों को कम समय में संदर्भ सेवा प्रदान कर देगा अल्पतम सिद्धान्त कहलाता है।
2. अधिकतम सेवा सिद्धान्त:- अधिकतम सेवा सिद्धान्त के अनुसार पुस्तकालय संदर्भ पुस्तकालय अध्यक्ष को संदर्भ सेवा प्रदान करने का आत्मविश्वास होता है वह पाठकों को अधिकतम सेवा प्रदान करने को तत्पर रहेगा।
3. मध्यम सेवा सिद्धान्त:- मध्यम सेवा सिद्धान्त अल्पतम एवं अधिकतम सेवा सिद्धान्त के बीच का मार्ग है। यह उत्तम सेवा भी प्रदान कर सकता है। या अधिकतम सेवा भी प्रदान कर सकता है।
ड़ाॅक्टर एस.आर. रंगनाथन का वर्गीकरण:-
ड़ाॅक्टर एस.आर. रंगनाथन ने संदर्भ कार्य के दो पहलुओं की पहचान की -रेडी संदर्भ सेवा और लंबी दूरी संदर्भ सेवा।
तैयार संदर्भ सेवा ( त्वरित संदर्भ सेवा ):- इस सेवा मे प्रष्नो का Ans. 30 मिनट से पहले दिया जाता है अधिकांश तैयार संदर्भ सेवाएं तथ्य खोजने वाले प्रकारों की प्रकृति होती हैं जो बहुत ही कम समय में प्रदान की जाती है। पुस्तकालय आमतौर पर इसी तरह की सेवाएं प्रदान करने के लिए संदर्भ पुस्तक का उपयोग करता है। एक संदर्भ पुस्तक की जटिल प्रकृति, इसकी कृत्रिमता, और जानकारी की व्यवस्था के तथ्य से तैयार संदर्भ सेवाओं की आवश्यकता उत्पन्न होती है। प्रतिष्ठित व्यक्ति, विदेशी गणमान्य व्यक्ति या विद्वान आमतौर पर इस तरह की सेवाओं के लिए संपर्क करते है। कभी-कभी कुछ नियमित ग्राहकों को अपने हिस्से पर समय की कमी के कारण तथ्य खोज संदर्भ सेवा की भी आवश्यकता होती है।
लंबी रेंज संदर्भ सेवा:- इसे व्यापक सन्दर्भ सेवा भी कहते है। इस सेवा के अन्र्तगत विस्र्तत् जानकारी प्रदान कि जाती है। इस सेवा को प्रदान करने मे 30 मिनट से अधिक समय लगता है। लंबी दूरी की संदर्भ सेवा आवश्यक जानकारी पर पहुँचने के लिए जानकारी के हर संभावित Source से परामर्श करने पर आधारित है। इस प्रकार की सेवा तुरन्त प्रस्तुत करना संभव नहीं है। आवश्यक समय आधा घंटे से हफ्तों तक हो सकता है। लंबी दूरी की संदर्भ सेवा में खोज संदर्भ पुस्तकों में शुरू होती है। और फिर सामान्य पुस्तकों, पुस्तिकाओं, रिपोर्टों, आवधिक पत्रों में लेख आदि पर जाती है। यदि जानकारी लाइबे्ररी मंे उपलब्ध नहीं है। तो खोज अन्य स्थानीय पुस्तकालयों में भी जा सकती है। और कभी-कभी देश के अन्य पुस्तकालयों के लिए। आज उपलब्ध लंबी दूरी की संदर्भ सेवा कल तैयार संदर्भ सेवा बन सकती है। क्योंकि इस समय तक संदर्भ पुस्तकालय अपने पिछले अनुभव से सामग्री का पता लगाने में सक्षम होगा। धीरे-धीरे लंबी दूरी की संदर्भ सेवा का दायरा बढ़ना शुरू हो गया। अब गं्रथसूची सेवा, रेफरल सेवा, अनुवाद सेवा, आदि लंबी दूरी संदर्भ सेवाओं को माना जाता है।
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