चयनित सूचना सेवा (SDI)

इसमे प्रत्येक शोधकर्ता व विशेषज्ञ को व्यक्तिगत स्तर पर उनके लिए प्रलेखो के विषय मे सूचना प्रदान की जाती है।

चयनित सूचना प्रसार सेवा एक प्रकार से सामयिक अभियंता सेवा का एक नवीव स्वरूप है।

इस सेवा के अन्तर्गत वैज्ञानिक, तकनिशियन तथा उनके विषय से सम्बन्धित चुने हुए प्रलेखो के बारे मे सूचना दी जाती है।

चयनित प्रसार सूचना सेवा का विकास H.P. लुहान (1961) मे किया था।

चयनित सूचना सेवा (SDI)
चयनित सूचना सेवा (SDI)

परिभाषा:-

डाॅ.एस.आर.रंगनाथन के अनुसार:- यह पाठको को यथातथ्य, शीघ्रकार्य तथा सर्वागंपूर्ण सूचना प्रदान करने की सेवा है।

H.P. लुहान के अनुसार:- चयनित सूचना प्रसार सेावा किसी भी संस्थान द्वारा प्रदान की जाने वाली वह सेवा है जो सभी स्त्रोत से नवीन सूचना सामग्री का चयन कर उक्त संगठन के उन विभागो मे प्रसारित करती है जहाॅ पर उसके वर्तमान कार्य एवं रूचि का सम्बन्ध व उपयोगिताओ की संभावना अधिक हो SDI मे उपयोगकर्ताओ की आवश्यकता पर अधिक बल दिया जाता है।

SDI के प्रमुख कार्य:-

1. उपयोगिता की प्रोफाइल:- इस सेवा का केन्द्र बिन्दु पाठक प्रोफाइल है इसमे सर्वप्रथम ऐसे पाठको का चयन किया जाता है जो इस सेवा मे इच्छुक हो तथा इसके बाद उनकी विषय रूचि जानी जाती है। उनका पूर्ण विवरण तैयार कर प्रत्येक उपयोग के नाम से अलग फाइल तैयार की जाती है।

2. प्रलेख प्रोफाइल बनाना:- पुस्तकालस मे प्राप्त होने वाले प्रलेखो मे विश्लेषित कर उनकी विषय वस्तु को उसी व्यवस्था द्वारा प्रदर्शित किया जाता है जो उपयोगिता प्रोफाइल के लिए उपयोग की गई है। इसके लिए शब्दकोष व अनुक्रमणिका प्रणाली का प्रयोग किया जाता है ताकि मिलान मे आसानी हो।

3. दोनो प्रोफाइल का मिलान:- इसमे कम्प्यूटर की सहायता ली जाती है इस प्रक्रिया मे पाठक प्रोफाइल तथा प्रलेख प्रोफाइल के विशिष्ट विषय से मिलान किया जाता है। इसमे पाठक की सूचना, आवश्यकता तथा प्रलेखो की विषयवस्तु की अनुरूपता काशान हो सके।

4. अभिसूचना भेजना:- इसके अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्तिगत पाठक को विभिन्न विधियो द्वारा रूचि से सम्बन्धित प्रलेखो के बारे मे सूचना प्रदान की जाती है।

5 पुननिर्वेशन:- SDI सेवा का एक मुख्य गुण है इसके अन्तर्गत एक ऐसी विधि का प्रावधान किया जाता है जिसमे प्रत्येक अभिसूचना के उत्तर मे पाठक की प्रतिक्रिया ज्ञात हो सके। यदि प्रलेख उसकी रूचि का नही है तो वह संकेत कर सकता है सम्बन्धित प्रलेख किसी अन्य उपयोगकर्ता के लिए उपयोगी हो सकता है।

6. पाठक की प्रोफाइल पुनः संशोधन:- जैसे ही यूजर की अभिरूचि मे पुननिर्वेश ज्ञात होता है तो प्रलेखन कर्ता अथवा सूचना अधिकारी पाठक प्रोफाइल को उसकी प्रतिक्रिया के अनुसार संशोधन करता है।

7. पाठक की इच्छा का समाधान:- यदि कोई पाठक किसी प्रलेख की मुल प्रति की मांग करता है उसे वह प्रलेख प्रदान की जाती है। यदि प्रलेख उपलब्ध ना हो तो उसकी छायाप्रति भेजी जाती है।

8. कम्प्यूटर आधारित सूचना सेवा:- H. P. Luhan द्वारा मशीनीकृत पद्धति का प्रतिपादन किया गया जिसके अन्तर्गत शोधकर्ता की रूचि से सम्बन्धित सामग्री के चयन हेतु कम्प्यूटर और चिन्हित पत्रको के प्रयोग से काफी समय की बचत होती है।

SDI की विधियां:-

1. परम्परागत विधि:- जो विधि परम्परागत रूप से चली आ रही है जिसमे उपयोगकर्ता को उनके स्थान पर सूचना उपलब्ध कराता हो जिससे समय नष्ट होने से बचे।

2. अपरम्परागत विधि:- इस विधि मे कम्प्यूटर का प्रयोग किया जाता है। इस लिए इसे कम्प्यूटरीकृत विधि भी कहते है। भारत मे इंसडाॅक द्वारा 1975 ई. मे मद्रास के ITI मे सूचना प्रसारण केन्द्र का संचालप किया गया। SDI सेवा का प्रारम्भ 1958 मे H.P. लुहान द्वारा इस सेवा का आयोजन प्रत्येक यूजर की सूचना सेवा को ध्यान मे रखकर किया गया। इस सेवा मे उपयोक्ता के समय को ही महत्व प्रदान किया जाता है इस सेवा मे प्रशिक्षण करने का कोई प्रश्न नही है।

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