राजस्थान के प्रमुख शिलालेख

बड़ली का शिलालेख-अजमेर (443 ई.पू.) -राज्य का सबसे प्राचीन एवम भारत का दूसरा प्राचीन (नोट: भारत का सबसे प्राचीन शिलालेख पियवा है।) 

घोसुण्डी का शिलालेख - नगरी, चितौडगढ़, वैष्णव सम्प्रद का राज्य में सबसे प्राचीन शिलालेख। इसका एक टुकड़ा उदयपुर संग्रहालय में रखा हुआ है। ब्राह्मी एवं संस्कृत भाषा में लिखित। 

मानमोरी का शिलालेख - पठोली, चितौड़ (713 ई.) मानसरोवर झील के निकट मिले इस शिलालेख में अमृत मंथन का उल्लेख है, कर्नल टॉड ने इसे इंग्लैण्ड ले जाते समय समुद्र में फेंका था। 

किराड़ू का शिलालेख - बाड़मेर (1161 ई.) - संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण इस शिलालेख में परमारों की उत्पति माउण्ट आबू के वशिष्ट मुनि के यज्ञ से बताई गई है। 

Rock-Inscription-of-Rajasthan
Rock-Inscription-of-Rajasthan

बिजौलिया का शिलालेख-भीलवाड़ा (1170 ई.)- इसके लेखक गुणभद्र व कायस्य है जबकि इसको पत्थर पर उत्कीर्ण गोविन्द ने किया। इसके अनुसार चैहान वंश की उत्पति वत्सगौत्र के ब्राह्मण से हुई, यह शिलालेख जैन श्रावण लोलाक द्वारा बनवाया गया था। 

रणकपुर प्रशस्ति - पाली (1439 ई.)-इस प्रशस्ति में बप्पा एवं कालभोज को अलग-अलग बताया गया है। इसका शिल्पी देपाक था। 

कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति - चितौड़ (1460 ई.)-इसकी रचना अत्रि भट्ट ने आरम्भ की तथा महेश भट्ट ने पूर्ण की। इसे जैन प्रशस्ति भी कहते है। इसमें कुम्भा द्वारा रचित ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है। 

कुम्भलगढ़ प्रशस्ति - राजसमन्द (1460. ई.)- यह वर्तमान में उदयपुर संग्रहालय में है। इसमें मेवाड़ के उद्वारक हम्मीर को विषमघाटी पंचानन कहा गया है। 

जगन्नाथराय प्रशस्ति - उदयपुर (1652 ई.)-यह प्रशस्ति उदयपुर के जगदीश मन्दिर में लगी हुई है। इसके रचयिता कृष्ण भट्ट थे। 

राजप्रशस्ति - राजसमन्द झील (1676 ई.)- यह प्रशस्ति राजसमन्द झील के उत्तरी भाग के नौ चैकी पाल पर 25 काले पाषाणों पर संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण है। इसके रचयिता रणछोड़ भट्ट है। यह एशिया की सबसे बड़ी प्रशस्ति है। इस प्रशस्ति में जहांगीर व अमरसिंह के मध्य हुई संध् िएवं राजसमन्द झील का उल्लेख है। 

वैद्यनाथ प्रशस्ति - सीसारमा, उदयपुर (1719)-इस प्रशस्ति के अनुसार हारित ऋषि के आशिर्वाद से बप्पा रावल को राज्य की प्राप्ति हुई इस प्रशस्ति के लेखक रूपभट्ट है। 

आमेर का लेख - जयपुर (1612 ई.)-इस लेख में कच्छवाहा शासकों को ‘रघुवंश तिलक‘ कहा गया है।

बीकानेर प्रशस्ति - जूनागढ़ दुर्ग (1594 ई.)-इस प्रशस्ति के दोनों ओर जयमल व फता की मूर्तियाँ लगी हुई है। 

माचेड़ी का शिलालेख - अलवर (1382 ई.)-इस शिलालेख में पहली बार बड़गुर्जर शब्द का प्रयोग हुआ है। 

अपराजित का शिलालेख - नागदा, उदयपुर (1661ई.) डॉ. औझा ने इसे उदयपुर के विक्टोरिया संग्राहलय में रखवाया।

घटियाला का शिलालेख - जोधपुर (861 ई.) - संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण इस शिलालेख को ‘माता का साल‘ भी कहते है। इसके लेखक मंग‘ एवं उत्कीर्णकर्ता कृष्णेश्वर है। राजस्थान में पहली बार सती प्रथा की जानकारी भी इसी शिलालेख से मिलती है।

औंसिया का लेख - जोधपुर (956 ई.) - यह शिलालेख वर्ण व्यवस्था की जानकारी देता है।  

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