अंकन in Hindi

पुस्तकालय वर्गीकरण मे अंकन का विकास या उत्त्पति विद्वानो ने तीन तरह से बतायी है -
   1.     प्राचीन काल
   2.     मध्य काल
   3.     वर्तमान काल

अंकन
पुस्तकालय वर्गीकरण के लिए अंकन कि जरूरत सर्वप्रथम मेल्विन डीवी ने महसूस की।
मेल्विन डीवी ने DDC वर्गीकरण पद्धति मे प्रथम बार इण्डोअरेबिक अंकन का प्रयोग किया।
DDC का प्रथम संस्करण 1876 मे आया।
इण्डोरिेबिक अंकन के रूप मे उपयोग करके ग्रंथालय वर्गीकरण को नयी दिशा एवं वैज्ञानिक आधार प्रदान किया है।
international biblography conference 1895 हेनरी ला फोंटेन और पाॅल आटलेट ने मिलकर बू्रसेल में एक अंर्तराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जो FID के नाम से प्रचलित है UGC सार्वभौमिक वर्गीकरण पद््धति UGC दशमलव वर्गीकरण पद््धति DDC पर आधारित थी FIC में मिश्रित अंकनों का प्रयोग किया गया

           इस प्रकार से अंकन की उत्पत्ति में यूडीसी तथा डीडीसी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है इन दोनों को मध्य में स्थान दिया गया है

      परिभाषाएं:-
      1. पामर व वेल्स के अनुसार - अंकन व्यवस्था को यंत्रवत ठीक रखने की एक नीति है।
     2. रंगनाथन के अनुसार - किसी वर्गीकरण पद्धति मे वर्गो को प्रस्तुत करने के लिए प्रयुक्त क्रमिक अंको की विधि है।
     3. हेनरी ई बिल्स के अनुसार - अंकन किसी क्रम व्यवस्था मे चिन्हो अथवा प्रतीको की एक विधि है जिसमे पदो अथवा वस्तुओ के व्यवस्था क्रम को निर्धारित किया जाता है।
     4.  रिचर्डसन के अनुसार - अंकन एक संक्षिप्त प्रतीक है अंकन को न केवल विभाजन के प्रस्तुतीकरण को ही व्यक्त करना चाहिये बल्कि क्रम की भी अभिव्यक्ति जहाॅ तक हो सके करनी चाहिये।
    5. माग्रेट मान के अनुसार - वर्गाें तथा उनके उप वर्गों के लिए निर्दिष्ट चिन्हों एवं प्रतीकों उस पद्धति का अंकन करते है।
    6. बरविक सेयर्स के अनुसार -  पुस्तको का अंकन चिन्हों अथवा प्रतीकों की एक श्रृृखला है। जो पदो ंके नामों के स्थान पर प्रयोग किया जाता है। और वर्गीकरण की व्यवस्था को प्रदर्शित करने का एक सरल माध्यम भी है।
     7. हेनरी ई. ब्लिस के अुनसार - अंकन प्रतीकों तथा चिन्हों की प्रणाली है। जो पदों तथा उनके भागों की एक श्रृृखला अथवा वस्तुओं की पद्धति को व्यवस्थित क्रम में निर्दिष्ट करता है।
      8. फिलीप के अनुसार - अंकन किसी वर्ग अथवा उपवर्ग के विभाजन या उपविभाजन नामों के लिए निर्धारित चिन्हों की श्रृंखला को अंकन कहते है।
    
      वर्गीकरण की आवश्यकता वर्गीकरण पद्धति मे ग्रहिता तथा श्रृंखला मे ग्राहिता करने के लिए आवश्यक है।
     अंकन की आवश्यकता:- (need and function of notation)
    1. अंकन का प्रयोग लेखक के चिन्ह ग्रथांक एवं क्रमांक प्रदान करने के लिए किया जाता है
      2. पुस्तकालय में अंकन का प्रयोग होने से पलकों पर पुस्तकों को उसके स्थान निर्धारण तथा उसे खोजने में आसानी होती हैं
       3. अंकन द्वारा तालिकाओं और सारनियां की क्रम व्यवस्था बनाने में सहायक होता है
       4. स्मरण शीलता को व्यवहारिक स्वरूप प्रदान करने में अंकन का इस्तेमाल किया जाता है
       5. अंकन पुस्तकालय में पाठ््य सामग्री के आदान-प्रदान प्रणाली में सुविधाजनक होता है
   
      अच्छे अंकन के गुण:-
      
       सियर्स महोदय के अनुसार अच्छे अंकन के निम्नलिखित गुण होने चाहिए
      1.     संक्षिप्तता:- अंकन अधिक से अधिक छोटा होना चाहिये क्योकि की संक्षिप्तता उसके आकार के विस्तार पर निर्भर करती है। उदा. DDC मे प्रयुक्त अंकन सरल है इसमे 0 से 9 इण्डोअरेबिक अंको का प्रयोग किया गया है।
      2.     सरलता:- अंकन की सरलता से तात्पर्य है जिन्हे हम सहज रूप मे लिखा, पढा एवं आसानी से स्मृति मे रखा जा सके।
     3.     वर्धनशीलता:- वर्धनशीलता, विस्तारशीलता, ग्रहिता व समायोजनशीलता शब्दो का प्रयोग एक ही अर्थ व उदे्श्यो को ध्यान मे रखकर किया जाता है। अंकन ज्ञान के क्षेत्र मे निरन्तर उत्तपन्न होने वाले विषयो व उपवर्गो व विचारो को वर्तमान अनुक्रम मे समुचित स्थान प्रदान करने की ़क्षमता रखता हो।
     4.     स्मरणशीलता:- वर्गीकरण पद्धति मे प्रतीको या चिन्हो का इस भांति प्रयोग करना चाहिये ताकि कही भी उनका प्रयोग किया जाये उनका अर्थ लगभग ही समान हो।
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      अंकन के उपनियम:- डाॅ.रंगनाथन ने अंकन के 4 उपनियम बताएं है।      

     1.     सापेक्षता का उपनियम - इस उपनियम का आशय है कि किसी को उस विशेष अथवा एकल विचार के अनुरूप ही होना चाहिये इसके अनुसार वह वर्ग अधिक विस्तार वाला हो उसे कम अंको के द्वारा ही छिपाया जाना चाहिये। उदा. एशिया -4  भारत-44 राजस्थान-4437
     2.     अभिव्यंजता का उपनियम - ऐसे अंकन का प्रयोग किया जाना चाहिये जो कि वर्गीकरण पद्धति के वर्ग विभाजन के क्रम को आसानी से व्यक्त कर सके। वर्ग संख्या मे सभी अंक, प्रतीक चिन्ह अपनी अलग-अलग विशेषताओ को बताते है। उदा. KZ311- गाय  KZ312- भैंस  KZ313- बकरी
      3.     मिश्रित अंकन का उपनियम - मिश्रित अंकन वर्गीकरण पद्धति मे उस पद्धति को अतिगतिशील तथा समय की आवश्यकताओ के अनुरूप बनाता है।
      4.     स्मृति सहायक उपनियम - अंकन को स्मरणशीलता का होना चाहिये जिससे किसी तथ्य विचार या अंक को मस्तिष्क मे देखकर लाया जा सकता है।
    
      अंकन के प्रकार:- यह दो प्रकार का होता है। 
   
     1. शुद्ध अंकन (Pure Notation):- जिस वर्गीकरण पद्धति मे एक ही प्रकार के अंकन को प्रयोग किया जाता है उसे शुद्ध अंकन कहते है। मेल्विन डीवी की DDC (दशमलव वर्गीकरण पद्धति) मे सर्वप्रथम शुद्ध अंकन का प्रयोग किया गया है। DDC मे इण्डोअरेबिक अंक 0 से 9 का प्रयोग कर शुद्ध अंकन का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है। DDC मे दशमलव बिंदु का प्रयोग केवल आंखो को आराम देने के लिए किया गया है। जैसे - 1 से 9 व A से
      C A Cutter की एक्सपेन्सिव क्लासीफीकेशन पद्धति भी शुद्ध मानी जाती है।   
      शुद्ध अंकन के गुण -
      (1) त्रुटि होने की संभावना नही रहती है।
      (2) पाठको व कर्मचारियो के समय की बचत होती है।
     2. मिश्रित अंकन:- जिस वर्गीकरण पद्धति मे एक से अधिक प्रतीक चिन्हो जैसे रोमन बडे अक्षर व रोमन छोेटे अक्षर, इण्डोअरेबिक, ग्रीक अक्षर तथा विराम चिन्ह आदि का प्रयोग किया गया है उसे मिश्रित अंकन कहते है। मिश्रित अंकन का सर्वप्रथम प्रयोग रिचर्डसन ने अपनी प्रिंसटल प्रणाली मे किया है। हेनीर ई बिल्स ने मिश्रित अंकन की बहुत प्रशंसा की है क्योकि इसमे प्रयुक्त विभिन्न प्रतीको का क्रम पाठको को ज्ञात होता है। जैसे B के बाद C आयेगा व 1 के बाद 2 आयेगा। मिश्रित अंकन मे विभिन्न प्रकार के अंकनो का प्रयोग किया जाता है।
      (1) अरेबिक अंक 0-9
      (2) रोमन दीर्घ अक्षर A-Z 
      (3) रोमन लघु अक्षर a-z
      (4) विराम चिन्ह
      (5) गणित चिन्ह
      (6) तीर चिन्ह (अग्रमुखी व पश्चमुखी)
      (7) वृत्ताकार कोष्ठक
      (8) डेल्टा

      ड़ाॅक्टर एस आर रंगनाथन अपनी कृति प्रोलेगोमिना लाइबे्ररी क्लासिफकेशन ( तृृतीय संस्करण खंड़ 1, 1967 ) में इन वर्गीकरण पद््धतियों को छः प्रकार की श्रेणियों में विभाजित किया
      1.     परिगणात्मक वर्गीकरण पद्धति
      2.     लगभग परीगणात्मक वर्गीकरण पद्धति
      3.     लगभग पक्षात्मक वर्गीकरण पद्धति
      4.     अपरिवर्तनीय पक्षात्मक वर्गीकरण पद्धति
      5.     पूर्ण पक्षात्मक वर्गीकरण पद्धति
      6.     मुक्त पक्षात्मक वर्गीकरण पद्धति

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